
लोकसभा का प्रश्नकाल, जो आमतौर पर सवाल-जवाब और लोकतंत्र के जीवंत होने का प्रतीक होता है, आज एक बार फिर विपक्षी सांसदों की जोरदार नारेबाज़ी और तख्तियों की झड़ी के बीच सियासी अखाड़ा बन गया। इस बार लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला की नाराज़गी साफ़ देखने को मिली। चेहरा लाल, लहजा सख्त और लफ्ज़ तीखे — बिरला बोले, “क्या आप लोग सवालों से भाग रहे हैं या संसद को स्टेज शो बना रहे हैं?”
“आपको भेजा था सवाल पूछने, नारे लगाने नहीं!” – बिरला का राहुल को सीधा संदेश
प्रश्नकाल के दौरान जैसे ही विपक्षी सांसदों ने तख्तियां लहराना शुरू किया, स्पीकर बिरला का पारा चढ़ गया। उन्होंने सीधे तौर पर नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी से कहा, “माननीय नेता विपक्ष, अपने साथियों को समझाइए — ये सदन है, सोशल मीडिया ट्रेंडिंग जोन नहीं!”
बिरला का तंज जारी रहा:
“आपने कहा ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा होनी चाहिए, फिर आप खुद उसे रोक रहे हैं। देश देख रहा है, नारेबाज़ी से जवाब नहीं मिलते।”
“तख्तियां संसद में या चुनावी रैली में?”
स्पीकर ने जब देखा कि विपक्षी सांसद पर्चियां और पोस्टर लहरा रहे हैं, तो उनका सब्र जवाब दे गया। उन्होंने कहा, “आपको सदन में पोस्टरबाज़ी के लिए नहीं, सवाल पूछने के लिए चुना गया है।”
सदन का माहौल देखकर ऐसा लग रहा था जैसे लोकतंत्र का सबसे बड़ा मंच “Reality Show” का सेट बन गया हो।
विपक्ष की “नियोजित रणनीति” या “शोर मचाओ, मुद्दा हटाओ”?
बिरला ने दो टूक कहा कि यह “नियोजित बाधा” है। उन्होंने तर्क दिया कि प्रश्नकाल संसद का सबसे अहम समय होता है, जहां जनता के मुद्दे उठाए जाते हैं।
“देश जानना चाहता है कि आप प्रश्नकाल क्यों नहीं चलने देना चाहते?” – यह वाक्य बार-बार गूंजता रहा।
सवाल छूटे, कैमरे चमके — असली मुद्दे फिर किनारे
सवालों से बचते सांसद, नारों में डूबता लोकतंत्र — यही दृश्य रहा संसद में। क्या “ऑपरेशन सिंदूर” पर चर्चा से ध्यान भटकाना विपक्ष का उद्देश्य था या फिर यह एक और “सियासी स्टंट”?
संसद नहीं, संसद टीवी का प्राइम टाइम ड्रामा!
लोकसभा में आज जो हुआ, वह संसदीय गरिमा पर एक सवालिया निशान है।
सवाल पूछने के समय में नारेबाज़ी, तख्तियों का प्रदर्शन और फिर कैमरों के सामने “रौबदार” मुद्रा — क्या यही है 21वीं सदी की विपक्षी राजनीति?